रविवार, 1 जून 2014

ऑन दा वे टू श्रीनगर

वैसा ही हुआ, जैसा हम पिछली रात सोच कर सोये थे। सभी देर से उठे। अगली यात्रा के लिए टेक्सी पड़ताल की, तो कोई भी ट्रेवल एजेंसी हमारे सीमित समय में श्रीनगर घुमाने को राजी नहीं हो रही थी। उनका कहना था -"श्रीनगर जाना है तो छह दिन चाहिये, तीन दिनों में पटनीटॉप, शिवखोड़ी होकर जम्मू के साइट सीन्स देख लीजिये। क्यों व्यर्थ पैसा बर्बाद करते हैं?" उनकी बात में दम था। परन्तु, हमारी अपनी मज़बूरी रही। समय वास्तव में कम था। हाँ! हमने जब अपना पक्ष रखा कि किसी एक शहर को सलीखे से घूमने के लिए दस दिन भी कम हैं, उसे एक दिन में भी देखा जा सकता है; तो वे हमसे सहमत हो गए। और एक नई इनोवा गाड़ी शुभम-ट्रेवल्स के माध्यम से प्राप्त हुई। हमारा टेक्सी-ड्राइवर राजू बहुत मिलनसार था। रास्ते में वह एक प्रशिक्षित गाइड की भाँति जम्मू-कश्मीर का इतिहास, भूगोल, संस्कार-संस्कृति, राजनैतिक एवं सामाजिक स्थिति अपने अंदाज में बयां करता रहा। बीच-बीच में जब हम चुप हो जाते या हल्के-हल्के झोंके लेने लगते तो वह 'भगत के वश में हैं भगवान' सी.डी.चालू कर देता। वह धाराप्रवाह हिंदी बोलता था, मोबाईल पर डोंगरी में बात करता था, बाद में पता चला कि वह मुसलमान था।
घुमावदार रास्ता बर्फ, वहाँ का कस्बाई जन-जीवन, दूर पहाड़ पर चांदी सी चमकती बर्फ हमें आकर्षित कर रही थी। मौसम सुहाना था। हम दा एक कल्पनालोक में प्रवेश कर रहे थे। महाभारत के मिथ से जुड़ते हुए सौरभ ने कहा -पाण्डवों ने वानप्रस्थ में इसी मार्ग से स्वर्गारोहण किया होगा? सच में, यदि स्वर्ग की कल्पना निराधार नहीं है, तो स्वर्ग का रास्ता इन्हीं नैसर्गिक वादियों से गुजरता होगा।
रास्ते में पटनीटॉप रुके। वैष्णव देवी से 40 किलोमीटर की दूरी पर, ऊधमपुरजिले में एक पिकनिक स्पॉट। निचली हिमालयन पर्वत मालाओं में समुद्र सतह से 2014 मीटर ऊपर। चिनाब नदी के किनारे-किनारे, वादियों का सौन्दर्य, माउंट-स्केप,पाइन-फारेस्ट, हरियाली, सुखद वातावरण। 20 अप्रैल की दोपहर, परंतु तापमान 15-16 डिग्री। हमारे टेक्सी-ड्राईवर ने बताया कि हम कभी भी आयें, इससे ज्यादा टेम्परेचर यहाँ नहीं रहता।
पटनीटॉप का वास्तविक नाम 'पाटन दा तालाब' था,जिसका अर्थ 'राजकुमारी का तालाब' रहा। ब्रिटिश राजस्व-दस्तावेजों में अपभ्रंशित होकर पटनीटॉप हो गया। एक जगह पतनितोप भी लिखा देखा। सैलानियों के लिये स्वर्ग इस स्थल को 'मिनी-कश्मीर' भी कहा जाता है। छोटी सी जगह में बहुत सारे टूरिस्ट हॉटल, सभी लबा लब। अभी ज्यादातर बंगाली परिवार, कुछ हनीमून कपल्स भी। नाथा टॉप में अच्छी खासी भीड़ रही। वहाँ के हरे-भरे खुले वातावरण में शौर्य (पौत्र) को तो मानो पर लग गए, उसने लॉन में खूब लोट लगाई, बहुत देर दौड़ा। हमने वहाँ पानीपुरी खाई, फोटो खिचवाई और सुकून के कुछ पल बिताये। यह स्थान मिलिटरी नियंत्रण से मुक्त है, अतः लगता है, यहाँ प्रकृति एवं प्रकृति-प्रेमी खुलकर साँस लेते है।
पटनीटॉप को पांव-पांव घूमते हुये हमने 600 वर्ष पूर्व निर्मित लकड़ी का बना नाग मंदिर (कोबरा मंदिर) देखा। वहाँ आयीं प्राकृतिक आपदाओं के बाद भी यथावत। इस मंदिर के गर्भगृह में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। यहाँ स्थानीय दस्तकारी और कशीदाकारी बेजोड़ है। कई विक्रय केन्द्र रहे जो पर्यटकों को ललचा रहे थे। एक कम उम्र का बाक-पटु बालक हमें 'बुलबुल का बच्चा' दिखाने के बहाने ले गया, परन्तु वहाँ कश्मीरी कम्बल बिक रहे थे। पूत के गुण पालने में देखकर हम हतप्रभ रह गए। वैसे यदि हमें मोल-भाव करना आता तो शाल और सलवार-शूट्स अच्छे और खरीदने योग्य रहे।
लौटते में, ड्राईवर ने बताया कि नवम्बर-दिसम्बर में यहाँ बर्फ पड़ती है। तब, स्थानीय आवागमन हेतु चैन टायर की गाड़ियाँ चलती हैं। वैसे शीघ्र ही राज्य-सरकार यहां रोपवे लगाने जा रही है, ट्रैकिंग, पैराग्लाइडिंग तथा मौंटेअरिंग के लिए आने वाले सैलानियों के लिए यह एक अच्छी ख़बर है।
पटनीटॉप छोड़ते ही वातावरण ठण्डा होने लगा। शीत लहर चलने लगी, लगा बर्फ गिरेगी। सभी खुश; बच्चों के मन-मयूर नाचने लगे। कुहासे के माहौल में लरजते पहाड़ी झरने कुछ अधिक शीतलता दे रहे थे। परन्तु दूसरी तरफ खाई से लहराते देवदार के वृक्ष गलबहियाँ डालने के लिए आतुर दिख रहे थे।
मानो, हमसे कुछ कहना चाहते हों-आपबीती भी, जगबीती भी। सच है, उनके पास बहुत है कहने-सुनाने के लिए। उन्होंने ही देखा है कल्हण की राजतरंगिणी का प्रवाह, उन्होंने ही तो सुनी है कवि कालिदास के मेघदूत की अनुगूँज। अशोक मौर्य से लेकर उमर अब्दुल्ला तक की सियासी गतिविधियों के समय साक्षी हैं ये देवदारु (देवताओं के लिए पेड़) वन। शिव-पुराण के आधार पर कहें तो, ये देवदार वन-भगवान शिव की बाट जोहते सिद्ध-साधु है, न जाने किस वेश या स्वरूप में प्रभु निकल जावें इसलिए हर आने-जाने वाले को वे नतमस्तक होते है। वैसे यदि देवदार के दो सीधे तने खड़े पेड़ों के मध्य अपलक दृष्टि जमायी जावें, तो वहां एक नई सृष्ट्रि जन्म लेती दिखाई देती है। चिंतन के नये आयाम खोलती हुई, हर बार नयी रोशन, हर बार नयी सोच, हर बार नया बिचार; लगता, देवदार के दो पेड़ नर और नारायण के अवतार हैं। उनके बीच एकाकार होती दुनियाँ, प्रकृति का पुरुष से मिलाप, जीवात्मा का परमात्मा में प्रवेश, जीवन का क्रम यूँ ही चलता है।
हमने अपने सिर को हौले से झटका, और बाहर के नज़ारे देखने लगा। पहाड़ की ढलान पर बने इक्के-दुक्के घर सुन्दर लग रहे थे। उनकी बाह्य दीवारें चटक रंगों से पुती थीं, जोउन में रह रहे लोगों की जीवट-वृत्ति की परिचायक थी। बर्फवारी -आक्रान्त क्षेत्र में घरों पर टीन की चादरें स्लोप में बिछी दिखीं, गिरी हुई बर्फ जल्दी से जल्दी बह जावे या नीचे खींची जा सके, यही सुविधा सोचकर यहाँ पक्की फ्लैट स्लेब नहीं ढालते। पटनीटॉप से
लगभग 50 किलोमीटर दूर रामबन आया, वहाँ के प्रसिध्द राजमा-चाँवल अनार की चटनी के साथ खाए। खाना खाते समय यहाँ से बगलिहार बांध का 370 मीटर का स्पिलवे स्पष्ट दिखाई दे रहा था। एन.एच.पी.सी. व्दारा निर्मित इस रन ऑफ़ द रिवर प्रोजेक्ट में 900 मेगावॉट विद्युत उत्पादन हो रहा है।
चिनाब नदी पर बना यह प्रोजेक्ट अंतर्राष्ट्रीय विवादों के कारण खूब चर्चित रहा। वैसे, इस राज्य में ऊर्जा-उत्पादन की असीम संभावनाएं हैं बशर्ते पाकिस्तानी पंचाट आड़े न आये।
टेक्सी ड्राईवर ने बातों-बातों में यह भी बतलाया कि एन.एच.ए.आई. चिनानी-नाजश्री टनल (लगभग 9.1 किलोमीटर) बनाकर जम्मू से श्रीनगर की दूरी 50 किलोमीटर कम कर रही है। इससे दो फायदे होंगे: एक, एलिवेशन में करीब 1.2 किलोमीटर कम होगा। दूसरा श्रीनगर की दूरी 5 घण्टों में तय हो सकेगी।
रास्ते में मीना (पत्नी) ने कान में दर्द की शिकायत की। पुत्रवधु (डॉ.) वर्षा ने बताया कि यह हाइट-फोबिया है। एक ऊचांई पर आकर ऑक्सीजन की कमी होने लगती है, जिससे कान में झनझनाहट, कान सुन्न पड़ना या कान तड़कने लगते हैं। हवाई यात्रा के समय भी ऐसा अनुभव होता है।

हमने टेक्सी रुकवाई। हम अपनी सड़क यात्रा की अधिकतम ऊँचाई पर थे। रोड किनारे एक टपरा था, जहाँ करीम मियां की भट्टी धूं-धूं कर जल रही थी और बाजु में कुछ कदम दूर एक खूबसूरत पहाड़ी झरना था। उसके ठंडे पानी के छींटे मारते ही नींद, सुस्ती, थकान सभी गायब, परन्तु ठण्ड से झुरझुरी दौड़ने लगी। सभी ने गर्म कपडे पहिने, गर्म चाय पी, और करीम मियाँ के बनाये पुए भट्टी में सेंक-सेंक कर खाए। सहज बातचीत ने कब आत्मीय सम्बन्ध स्थापित कर डाले? पता ही नहीं चला। 'चाय की दुकान' और 'एक प्याली चाय' की दुनिया ऐसी ही होती है। भट्टी की आंच ने ठुठरती हड्डियों को राहत दी। करीम मियाँ ने बताया कि ठण्ड में बर्फ सड़क पर उतर आती है, तब कई-कई दोनों तक आवागमन अवरुध्द रहता है। जम्मू-श्रीनगर मार्ग पर यातायात टप्प होना यानि कश्मीर की लय बिगड़ना है। अभी कल ही लैंड-स्लाइड के कारण घंटों ट्रैफिक जाम रहा। वास्तव में, बार्डर रोड के इंजीनियर बधाई के पात्र हैं, जो विषम परिस्थितियों में भी प्रकृति के विरुद्ध निर्माण करते हैं जन-जीवन की गति बनाये रखते हैं। करीम मियाँ ने बताया कि सामने ढलान पर उसका छोटा सा घर है। मौसम कैसा भी रहे, चाय की दुकान रोज खुलती है। चलते-चलते उन्होंने एक सलाह दी: आगे चाँवल नहीं खाना, मोटा चाँवल मिलता है, सभी को सूट नहीं करता, ब्रेड फुल्के चलेंगे। एक बड़े-बुजर्ग की बिना मांगे मिली सीख हमने गाँठ बांध ली।
राजू से बतियाते हुए हम ऐतिहासिक जवाहर सुरंग तक आ पहुंचे। 3 किलोमीटर लम्बी, जम्मू और कश्मीर के मध्य राष्ट्रीय राजमार्ग 1-ए पर यह इकलौती यात्रा-विकल्प है। प्रथम प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू व्दारा लोकार्पित यह सुरंग मार्ग सुबह 5.00 बजे से रात्रि के 11.00 बजे तक खुला रहता है। इस पर बार्डर सिक्युरिटी फोर्स की सतत निगरानी रहती है। देश की आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा में सीमा सुरक्षा बलों के साथ तैनात शक्तिमान ट्रकों को देखकर मन प्रसन्न हो गया। एक निजता, या यूँ कहें निजी संतुष्टि का अनुभव किया, क्योंकि ये ट्रक हमारे जबलपुर स्थित व्हीकल फैक्ट्री में बनते हैं।
रात्रि के 11.00 बजे हम होटल अलसमद पहुचें। मुस्लिम कल्चर और इंटीरियर से सुसज्जित, इसके कमरे आरामदायक तथा हवादार थे। श्रीनगर कभी आतंकवादियों और घुसपैठियों के कारण देशी-विदेशी सैलानियों के लिए असुरक्षित तथा बंद रहा, अब स्थिति सामान्य है। फिर भी, रात का समय, नया स्थान, नया वातावरण, हम कुछ तनावग्रस्त रहे। परन्तु होटल के रूम अटेण्डेंट अनवर का तकियाकलाम -'टेन्शन नहीं लेने का' हमें तनावमुक्त कर गया। रात में बहुत सुकून से नींद आई।