रविवार, 18 मई 2014

माँ वैष्णव देवी (अर्धकुंवारी तक का सफ़र)

अमृतसर से कटरा वाया जम्मू लक्ज़री बस से ओवरनाइट यात्रा कुछ थका देने वाली रही। विकल्प यदि ट्रैन चुनी होती तो जम्मू तक तो आराम रहता। हाँ, जम्मू से कटरा तो बस ही मिलती। वैसे जम्मू से कटरा तक एक रेल लाइन का कार्य प्रगति पर है और शीघ्र ही तीर्थयात्री सीधे कटरा तक रेल द्वारा पहुँच सकेंगे। ऐसी सुविधा मुहैय्या कराने के लिये रेल विभाग साधुवाद का पात्र है।
कटरा में होटल हिल व्यू पहले से बुक करवा रखा था, वहाँ की पिक-अप वेन आई और हमें हमारे लगेज के साथ ले गई। होटल पहुँच कर नहाया, तैयार हुए और माँ वैष्णव देवी के मन्दिर प्रवेश हेतु फोटो आई.डी. बनवाया। यह निःशुल्क प्रवेश पत्र छह घंटो तक मान्य होता है। मंदिर तक पहुँचने के लिये लगभग १५-१६ कि.मी. की चढ़ाई रही, पदयात्रियों के लिये सीढ़ियों के अलावा घुमावदार रास्ता था, घोड़े, पालकी और हेलीकाप्टर अन्य विकल्प थे।
हम लोगों ने पैदल माँ के दरबार तक पहुँचने का संकल्प किया, यह जानते हुए कि मुझे और मीना दोनों को पैदल चलने में तकलीफ होती है और नन्हा सहयात्री शौर्य, उसे तो गोद में एप्रन में ले जाना पडेगा।
रास्ते में दस-दस रुपयों की लाठियां मिल रही थी। जब हमने उसे खरीदना चाहा तो मीना ने मना कर दिया, 'हम दोनों एक दूसरे की लाठी (सहारा) बन कर मातारानी के दरबार तक पहुँच जाएंगे'। उसके आत्मविश्वास को सम्मान देते हुए हमलोगों ने एक जयकारा लगाया और आगे बढ़ गये।

भीड़-भाड़, रास्ते में घोड़ों-टट्टुओं की आवाजाही, उनकी लीद से उत्पन्न दुर्गंध, प्रसाद एवं अन्य सामग्री बेचने वालों के दलालों का ढ़ीठ आग्रह, घोड़ों-टट्टुओं और पिट्ठुओं को लेने अनुरोध; प्रथमदृष्टया माहौल अप्रियकर रहा। शनै:-शनै: हम सभी अभ्यस्त हो गये। रास्ते-रास्ते चाय, स्वल्पाहार, ठंडे पेय पदार्थ, प्रसाद, देवी श्रृंगार सामग्री, ड्रायफ्रूट्स की दुकानें। वहीँ जगह जगह बने मसाज सेंटर भी आकर्षण के केन्द्र रहे। मुख्य मंदिर में प्रसाद वहीं से मिलता है अत: हमलोग मातारानी के लिये चुनरी एवं श्रृंगार सामग्री ले लिये। वैष्णव देवी संस्थान द्वारा जगह जगह शेड्स, शौचालय एवं शीतल जल की व्यवस्था थी। हम रुकते-रुकते माँ का गुणगान करते बीच-बीच में पौत्र शौर्य के लिए गोदी बदलते हुए ऊपर की ओर बढ़ रहे थे। दल की कमज़ोर कड़ी तो हम तीन थे- मैं, मीना और मासूम शौर्य। जहाँ हम थोड़े से भी थककर सुस्त होते, काफिला रुक जाता। हमलोग बैठ जाते, शौर्य एप्रन से निकल कर खुले में खेलने लगता और बाकी सदस्य चुट-पुट खाने या सॉफ्ट ड्रिंक्स का बहाना खोज लेते।
यात्रा की चढ़ाई हमें मालूम थी, हमारे पैरों के सामर्थ्य की हमें जानकारी रही। परिवार साथ था अत: बिना किसी चिंता के पाँव-पाँव आगे बढ़ते गए। सच है 

मंज़िल भले दूर हो,
रास्ता हो कठिन। 
कन्धा मिलाकर साथ चले, 
तो कुछ नहीं मुश्किल॥
 
दर्शन कर लौटते श्रद्धालुओं के चेहरे पर ख़ुशी और परितोष हमारा उत्साह वर्धन करती थी। उन्हें देखकर हमलोग माता का जयकारा लगा देते, वे भी माता रानी की जय बोलते हुए आगे बढ़ जाते। लौटने वाले हम लोगों को नहीं जानते थे और न हम उन्हें- परन्तु जब हम उन्हें देखकर मुस्कराते तो उनके चेहरे की ख़ुशी दुगनी हो जाती। वे ऐसा व्यवहार करते मानो हम उनके सगे-सम्बन्धी हों। मुल्ला नसरुद्दीन की यह नसीहत जीवन में कितना काम आती है।  
अर्धकुंवारी पहुँचने के पूर्व ही हमारा दम टूटने लगा। तब वर्षा ने सहजता से एक बात कही- "हमारे आगे बढ़ाये दो कदम माता रानी तक पहुँचने की दूरी कम कर रहे हैं"। हम सभी में एक नयी ऊर्जा का संचार हुआ और माता रानी की जय बोलकर हम आगे कदम बढ़ाने लगे। रास्ते में एक आदमी मिला। उसने हम से पूछा- 'बैक सपोर्ट चाहिए?'। हमारी समझ में नहीं आया कि वह किस 'स्पोर्ट' की बात कर रहा है। विस्तार से पूछने पर उसने पीछे से एक हाथ हमारी कमर पर और एक हाथ पीठ पर लगाया और लगभग धकाते हुए चलने लगा। समझ में आया कि वह पीछे से हमे सपोर्ट देगा, जिससे हमें आगे बढ़ने में कठिनाई नहीं होगी। हम सभी हंसी-ठिठौली के माहौल में आए। सौरभ ने कहा- "कमर का पट्टा बांधकर आना था"। अलीशा बोली- "हमारे राजस्थान में कमर में फेंटा बांधकर चलते हैं"। 'कमर कसना' एक प्रचलित मुहावरा भी है। बात बदलते-बदलते पॉलिटिकल सपोर्ट लीडरशिप तक पहुँच गयी। माहौल को हल्का फुल्का रखने के लिए हम सभी एक दूसरे को बैक सपोर्ट देने लगे और सीखा कि कमर और पीठ सीधा रखकर ऊपर चढ़ने में कम तकलीफ़ होती है।
धीरे-धीरे रुकते रुकाते हम अर्धकुंवारी पहुँच गए। वहाँ पहुँचने पर हमे पता चला कि वहाँ की कैंटीन पहले ही दो घण्टों के लिए बंद हो चुकी थी। वहाँ न बैठने की व्यवस्था थी न खाने की। अंतत: रास्ते में मिल रहे वेफर्स और बिस्कुट से ही काम चलाया।
मंज़िल अभी दूर थी सफ़र अभी भी बाकी था। 

इस कड़ी के अन्य लेख क्रमानुसार इस प्रकार हैं 
५. माँ वैष्णव देवी (अर्धकुंवारी तक का सफ़र)